Monday, February 22, 2010

बाँधो ज़ोर से मुट्ठी ज़िन्दगी रेत है फ़िसल जायेगी


कब्र की ओर नहीं तो बता ज़िन्दगी किधर जायेगी

जैसे ओस की बूँद है कांपती हुई घास की नोंक पर

ये ज़िंदगी बस एक हवा के झोंके से बिखर जायेगी

हारने को कुछ नहीं और जीतने को दुनिया पड़ी है

फिर नहीं कोई और बाज़ी अब इससे बेहतर आएगी

ज़िंदगी दरिया की मौज औ तिनके सी हस्ती अपनी

चाहें न चाहें हम ये तो ले ही जायेगी जिधर जायेगी

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