Thursday, March 11, 2010

इस तरह से मोहब्बत में सनम गुफ़्तगू होनी चाहिये
जुबाँ पर आये न आये बात दिल तक पहुँचनी चाहिये
माना दो दिन बीत गये पर दो दिन और बचे भी हैं
दिल मे रहेगा हौसला तो किस्मत भी सँवरनी चाहिये
बहुत कोहराम मचा रखा है उसके परदे ने अजल से
आगे दुनिया को बढ़ाना है तो निकाब उठनी चाहिये
माना कुछ और भी देखने को है महबूब के सिवा यहाँ
लेकिन पहले तो उसके चेहरे से निगाह हटनी चाहिये
रोज़े अब्र भी खूब थे और शबे माहताब भी गुज़रीं कई
जिस तरह मेरी कटी ज़िन्दगी सबकी गुज़रनी चाहिये

Tuesday, March 9, 2010

इसी वहम में शहीदाने वतन पड़े होंगे
यहाँ उनकी मजारों पर मेले लगे होंगे
कौन जाने वे लोग जब हम सो रहे थे
आग मे तपे होंगे कि बर्फ़ मे गले होंगे
मुस्कराते डोलते रहे आँधियों मे बेखौफ़
यकीनन वे चिराग तूफ़ानो मे पले होंगे
गिरते हैं लोग सभी लेकिन जो हार गये
इक और बार फ़िर उठके न चले होंगे

Monday, March 8, 2010

लोग जब अपना काम करते हैं
तब वे सबका काम करते हैं
हम ही नहीं अच्छे लोग भी
ज़िन्दगी यूँही तमाम करते हैं
बड़ी मुश्किल से होती है सुबह
यूँही सुबह को शाम करते हैं
ज़िन्दगी भर गालियाँ जबाँ पे
मरने पर राम राम करते हैं
अच्छे करते हैं छुपते छुपाते
खराब वही सरेआम करते हैं
सिर्फ़ हमीं करते हैं अच्छा
और सब बुरे काम करते हैं
सब उसी की सूरते हैं यहाँ
हम सब को सलाम करते हैं
गालियाँ देते हैं बुरा कहते हैं
सब लोग मेरा नाम करते हैं
सारे बैठे रहते हैं निठल्ले
मिसिर को बदनाम करते हैं

Saturday, March 6, 2010

जिनकी सादगी पे मर मिटे हैं
आके पूछते हैं कौन मर गया
लोगों ने सरे दार मुझे देखा
उनका उठा के मैं सर गया
रसूख देखिये मेरे कातिल का
ये इल्ज़ाम भी मेरे सर गया
खींच के मेरे ही बगल से छुरी
वो शोख वार हमी पे कर गया

Friday, March 5, 2010

ख़ाक हो रहेगा दिल
उसकी ज़िद यही है
कुछ भी कहो तुम
सही बात नहीं है
कहेंगे पता है मगर
ये नई बात नहीं है
रोते कटी अपनी
इसका रोना नहीं है
कहाँ जाते हो उधर
मेरा वो घर नहीं है
सुनो दिल की ज़रा
इसको सुकून नहीं है
जहाँ रखो कदम
दुनिया मेरी वहीं है
क्या दूँ कुछ भी तो
यहाँ मेरा नहीं है
अपने तो कहेंगे ही
मिसिर बुरा नहीं है

Thursday, March 4, 2010

कमी हसीनो की न थी जहाँ मे
तुम उनमे मुझे लेकिन भा गये
मैकदे की इज़्ज़त का सवाल था
निकले तो हम भी लड़खड़ा गये
आलम पे छाये थे किसी वक्त
ढूँढो तो वो अब लोग कहाँ गये
फ़ूल जैसे थे कुचले गये बेवजह
कुछ लोग मगर खुशबू लुटा गये
गालिबोमीर तो खुदायेसुखन ठहरे
लेकिन मिसिर तुम भी छा गये

Wednesday, March 3, 2010

दिल हो जाता है गैर सुना था
लेकिन इस कदर न पता था
दावा सबको उस पर जरूर था
कोई कभी लेकिन न मिला था
ढूँढते बेकार मुझको यहाँ वहाँ
तू ही तो था अब मै कहाँ था
उसको खोजते पहुँचे तो मगर
दैरो हरम नहीं मैकदा वहाँ था

Tuesday, March 2, 2010

रुसवाई के डर से जो यहाँ नहीं आते
मत पूछिये कि कहाँ कहाँ नहीं जाते
कभी याद भूले ही उनको आयें हम
भूले से भी हमसे भुलाये नहीं जाते
नजर न लग जाये उनकी आँखो को
दिल के ये जख्म दिखाये नहीं जाते
होते हैं किस्से बयान नज़रों से ख़ास
होठों पे कभी हरगिज़ लाये नहीं जाते

Monday, March 1, 2010

मैयत पर उनको देख कर अपनी ये अफ़सोस हुआ
उनके आने का भरोसा होता तो पहले ही मर रहते
तीर कमाँ में और सैयाद कमीं में लाख हो उड़ जाते
दरवाज़ा कफ़स का खुला मिल गया होता पर रहते
रंगोखुशबू के बिना काँटों सा खूब जिये तो भी क्या
बेहतर था भले सुबह खिलते शाम तलक झर रहते
चुप बैठ के सहने से तो उसके ज़ुल्म कम होने न थे
सुनता न सुनता वो जाने तुम अपनी तो मगर कहते