जी मे है कि बहार आने तक रुकूँ
बागबान भी मगर अपना नहीं है
खुली रहें या मुंद जायें क्या फ़र्क
कोई अगर आँख मे सपना नहीं है
सुधरेगी कभी दुनिया तो सोचेंगे
फ़िलहाल तो यहाँ रहना नहीं है
बेकार बैठे से तो कटती नहीं है
काम मगर कोई करना नहीं है
भला बुरा वो जो चाहे करवाये
हमे किसी बात से डरना नहीं है
Oh! Simply great!
ReplyDeleteI am so happy to read this!