Wednesday, April 28, 2010

बड़ी देर से सब हमको समझा रहे हैं
बुरी बात है फ़िर भी किये जा रहे हैं
पता है कि गलत राह है मगर हम
दोस्तों के साथ को चले जा रहे हैं
फ़िर पे टाला है फ़िर एक बार उनने
वो हमें और हम नसीब आज़मा रहे हैं

Monday, April 26, 2010

वक्त के साथ ज़रूर कदम मिलाये चलिये
बीते हुये वक्त को दिल मे बसाये चलिये
कौन जाने कि फ़ूलों का फ़ैशन चला जाये
एहतियातन काटों से भी निभाये चलिये
कोई तो ऐसा हो जिसे सबसे छुपाना हो
किसी को तो दिल की बात बताये चलिये
कुछ तो जरूर हुस्न वालों से भी सीखिये
बात बेबात चाहने वालों को सताये चलिये
सम्भालिये खूब होशियारी से वजन को
बढ़ाके बात में और बदन मे घटाये चलिये

Thursday, April 22, 2010

जो लड़खड़ाये नही वो भी कहाँ पहुंचे
जो बैठ रहे तेरे दर पे कहाँ कहाँ पहुँचे
वहाँ के ज़िक्र से भी परहेज़ उनको था
उनको ढूँढते उस रात हम जहाँ पहुँचे
नई राहों पे चल दिये थे दो चार दीवाने
कहते हैं उनको मंजिलें वो जहाँ पहुँचे