Friday, September 2, 2011

रोशनी नहीं है या कहो अन्धेरा है
हमको हरहाल ग़ुरबत ने घेरा है
सिवाय यादों के कुछ नहीं यहाँ 
ये दिल है कि भूतों का बसेरा है 
चंद मुर्दा मुलाकातों के एहसास 
वक्त ने किस कदर मुंह फेरा है 
कुछ खुशनसीबों को पता नहीं 
जुल्फों के सिवा भी कुछ घनेरा है 
दिल है तेरा मगर फ़िर भी दर्द है 
न जाने क्या मेरा है क्या तेरा है 
लोग कहते हैं ये अच्छी गज़ल है
मैंने दर्दो गम का मंज़र उकेरा है 
कुछ भी नहीं जो हमेशा साथ रहे 
क्या है यहाँ जिसे कहिये मेरा है

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