Wednesday, September 7, 2011

एक टुकड़ा प्यास को तरसता रहा पानी 
सहरां की तपती रेत पे बरसता रहा पानी 
कहाँ वो पहाड़ और अब ये नरक के घाट 
घर वापसी को बेचैन तडपता रहा पानी
पेड़ों की याद में जो हुआ करते थे कभी
गीली लकडियों सा सुलगता रहा पानी 
उतारा पहाड़ ने तो खुर्शीद की शह पर
फ़िर बादल पे चढ़ के मंडराता रहा पानी 

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