एक टुकड़ा प्यास को तरसता रहा पानी |
सहरां की तपती रेत पे बरसता रहा पानी |
कहाँ वो पहाड़ और अब ये नरक के घाट |
घर वापसी को बेचैन तडपता रहा पानी |
पेड़ों की याद में जो हुआ करते थे कभी |
गीली लकडियों सा सुलगता रहा पानी |
उतारा पहाड़ ने तो खुर्शीद की शह पर |
फ़िर बादल पे चढ़ के मंडराता रहा पानी |
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