Thursday, September 8, 2011

सुबह की शाम हर शब की सहर होती है
ये हकीकत तो हमपे रोज जबर होती है 
हर वक्त आने वाले पल का इन्तिज़ार 
जिन्दगी अपनी बस यूँही बसर होती है 
नहीं बच पाता है बीमार इश्क में कोई  
जब तक कि चारागर को खबर होती है
आँखों में ही कटती है हमारे घर में रात 
उनके यहाँ तो पल भर में सहर होती है 
यहाँ जिन्दगी जब भी रहगुज़र होती है 
एक बस मौत ही तो हमसफर होती है 

1 comment:

  1. बहुत सार्थक रचना| धन्यवाद|

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