Monday, October 17, 2011

गर्दन झुकाई नजरें उठाई ज़रा मुस्करा दिया 
बिना तलवार उसने कितनों को गिरा दिया 
अक्सर तो ज़िंदगी में दोपहर की सी धूप थी  
जुल्फों की घनी छाँव ने सबको आसरा दिया 
छोटा बड़ा अच्छा बुरा नाम क्या बदनाम क्या 
वक्त के साथ जमाने ने सबको बिसरा दिया 
दुनिया में अबतक लड़के तो जीता नहीं कोई 
मुहब्बत करने वालों ने परचम लहरा दिया 
या तो लोग अपने ही दुश्मन हैं या बेवकूफ 
हमने मसीहाओं को ही कातिल ठहरा दिया 
किस खेत की मूली हो तुम आखिर मिसिर 
रोटी की फिकिर ने सबको यहाँ घबरा दिया 

Friday, October 7, 2011

आँखों में समाकर दिल में उतर गए 
नाम पे मेरे जो महफ़िल में मुकर गए 
उनके आने तक तो हम होश में ही थे  
न जाने वो फ़िर कब और किधर गए 
पूछा किये उनसे अपना पता अक्सर 
फ़िर लेकर उन्ही से अपनी खबर गए 
इन्ही आँखों ने उनको जाते हुये देखा 
ऐसे भी कुछ हादिसे हम पे गुजर गए 
बागबाँ से लड़ के गुलशन से अब हम 
इसी शाम निकले नहीं तो सहर गए 

Wednesday, October 5, 2011

साथ चलो तो वक्त सर पे उठा लेता है 
आगे चलने की मगर ये सजा देता है 
ये किताब भी किसी काम की न रही 
हर कोई अब इसे माथे से लगा लेता है 
पत्थरों का हो या हीरों का क्या फर्क 
चाहे जिसका भी हो बोझ डुबा देता है 
क्या क्या न सितम होते हैं ज़िंदगी में  
आदमी मरने पे उसे खुदा बना देता है 
सुनता तो नहीं कोई बातें मसीहा की 
उसके पीछे से मगर रस्म चला देता है 
लिख लिख के गज़ल लोग कहते हैं 
मिसिर बस रामकहानी सुना देता है 

Sunday, October 2, 2011

बड़ी मुश्किल है ये जो कभी मचल जाये
दिल कोई बच्चा तो नहीं जो बहल जाये
दोनों जहां भी देकर देखो इक बार इसे 
शायद मान जाये शायद ये संभल जाये 
इसने तो मेरा जीना हराम कर दिया है  
कोई ले जाये ये दिल दूसरा बदल जाये 
एक ही है तमन्ना इस दिल में बसी हुई  
तुम आओ किसी रोज तो निकल जाये
जो तोड़ना हो दिल तो एक इल्तिजा है 
ये देखना कहीं पता इसे न चल जाये