किया जरूर था मना हमने |
तो उन्हें मान जाना था क्या |
सब उसके हाल पे छोड़ दिया |
हाल अपना बताना था क्या |
बहुत जिक्र करता था जाहिद |
उसका आना जाना था क्या |
क्यों आखिर ये हमारा होता |
किसी का ज़माना था क्या |
भगवान मीर, चचा ग़ालिब, मियाँ दाग, अंकल फ़िराक, दादा फ़ैज़, मस्त जिगर, भइया मजाज़ ..और भी तमाम हैं जो जिम्मेदार हैं कुछ अच्छा बन पड़ा हो तो !
Wednesday, September 12, 2012
Friday, September 7, 2012
Monday, September 3, 2012
कुछ लोग सियासत करते हैं कुछ लोग बगावत करते हैं |
कुछ ऐसे भी हैं लोग यहाँ पर जो सिर्फ शिकायत करते हैं |
रोटी की तरह इन्साफ भी अब बहुतों की पहुँच से बाहर है |
कुव्वत वाले लोग ही केवल कचहरी अदालत करते हैं |
चुपचाप रहो चुपचाप सहो जो भी हुक्म हो आकाओं का |
काँधे से हट जाते हैं सर जो उठने की हिमाकत करते हैं |
वही लुटेरे बदल के चेहरे फिर फिर आकर जम जाते हैं |
बिना वजह हर पाँच साल में हम बड़ी कवायद करते हैं |
Friday, August 24, 2012
Monday, August 20, 2012
Friday, August 17, 2012
Thursday, August 9, 2012
Monday, August 6, 2012
Friday, July 20, 2012
उसको रंजिश अभी शायद मुझसे बाकी है
जब भी मिलता है बड़े तपाक से मिलता है
शिकायतें शर्तें बहाने शर्म और मजबूरियाँ
हमसे वो हमेशा भीड़ के साथ मिलता है
काँटो के सिवा कुछ नहीं देने को जिन्हें
अक्सर उनका चेहरा गुलाब से मिलता है
दूर रहकर बड़ी चोट करनी मुश्किल है
उससे होशियार जो आके गले मिलता है
कटोरे मे कुछ नहीं तिजोरी मे और और
न जाने यहाँ किस हिसाब से मिलता है
जब भी मिलता है बड़े तपाक से मिलता है
शिकायतें शर्तें बहाने शर्म और मजबूरियाँ
हमसे वो हमेशा भीड़ के साथ मिलता है
काँटो के सिवा कुछ नहीं देने को जिन्हें
अक्सर उनका चेहरा गुलाब से मिलता है
दूर रहकर बड़ी चोट करनी मुश्किल है
उससे होशियार जो आके गले मिलता है
कटोरे मे कुछ नहीं तिजोरी मे और और
न जाने यहाँ किस हिसाब से मिलता है
Thursday, July 5, 2012
Thursday, June 28, 2012
Wednesday, June 27, 2012
न देखा न बोले हमसे न मुस्कराए न सलाम किया
रात महफ़िल में उनने सब जाहिर सरेआम किया
जिस्मे बला नाजुक लब वो निगाहें वो अंदाजो अदा
सारे फितने उसके थे और मुफ्त हमें बदनाम किया
कैसे कैसे किस्मत वाले उन की बज्म में पहुंचे होंगे
हमने तो दरवाजे पर ही सारा वक्त तमाम किया
अक्सर हमने उठ उठ कर सोचा सबके साथ चलें
दिल ने ऐसी कोशिश को हरदम ही नाकाम किया
अमन चैन तो बाते हैं दुनिया को फितने ही भाते हैं
तैमूर ओ चंगेजों ने अपना यूँही तो नहीं नाम किया
रात महफ़िल में उनने सब जाहिर सरेआम किया
जिस्मे बला नाजुक लब वो निगाहें वो अंदाजो अदा
सारे फितने उसके थे और मुफ्त हमें बदनाम किया
कैसे कैसे किस्मत वाले उन की बज्म में पहुंचे होंगे
हमने तो दरवाजे पर ही सारा वक्त तमाम किया
अक्सर हमने उठ उठ कर सोचा सबके साथ चलें
दिल ने ऐसी कोशिश को हरदम ही नाकाम किया
अमन चैन तो बाते हैं दुनिया को फितने ही भाते हैं
तैमूर ओ चंगेजों ने अपना यूँही तो नहीं नाम किया
Monday, May 21, 2012
Thursday, May 17, 2012
Tuesday, March 27, 2012
Monday, March 26, 2012
भूख के अहसास को इंकलाबियों को कहने दो
गज़ल को माशूक की मरमरी बाहों में रहने दो
हर एक मंजिल को सूए दार नहीं होना चाहिए
कुछ को तो दिलबरे नादाँ की राहों में रहने दो
जी नहीं सकते सिर्फ रोटी से कहा था ईसा ने
कुछ तो खुशबू सुखन की गुलाबों में रहने दो
ज्यादातर तो गमे रोजगार में बह जाता ही है
कुछ रंगे लहू कमसिन के आरिजों में रहने दो
मुफलिसों की अंजुमन बेवा के माथे की शिकन
मसाइलों को सियासी गलियारों में रहने दो
हुस्नो इश्क न डूब जायें कहीं नारों के शोर में
इस हसीन नज़्म को पैमानों बहारों में रहने दो
गज़ल को माशूक की मरमरी बाहों में रहने दो
हर एक मंजिल को सूए दार नहीं होना चाहिए
कुछ को तो दिलबरे नादाँ की राहों में रहने दो
जी नहीं सकते सिर्फ रोटी से कहा था ईसा ने
कुछ तो खुशबू सुखन की गुलाबों में रहने दो
ज्यादातर तो गमे रोजगार में बह जाता ही है
कुछ रंगे लहू कमसिन के आरिजों में रहने दो
मुफलिसों की अंजुमन बेवा के माथे की शिकन
मसाइलों को सियासी गलियारों में रहने दो
हुस्नो इश्क न डूब जायें कहीं नारों के शोर में
इस हसीन नज़्म को पैमानों बहारों में रहने दो
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