Monday, May 21, 2012

यूँही दिन गुज़र गया रात यूँही ढल गई

बच बच के हमसे ज़िन्दगी निकल गई

कहना तो दूर जो कभी सोची तक नहीं

उनको वो बात कुछ ज्यादा ही खल गई

कल वहीं नासेह से मुलाकात क्या हुई

तौबा तो की थी पर तबीयत मचल गई

Thursday, May 17, 2012

वो मुझको बहुत भाता रहा

ये बात मैं खुदसे छुपाता रहा

मैं होता रहा कत्ल सरेआम

वो सर झुकाये शर्माता रहा

अब वो गालियाँ भी नहीं देते

पीने का तो मजा जाता रहा

इसे ज़िंदगी कहो तो कहो

सांस भर आता जाता रहा